Description
*जिससे आगे होगा सामना , है भाव अनसुने, अनोखी कामना * *पारम्परिक श्रेणी से है अलग थलग ,यदि पचा सको तो थाम लो पलक
*कहानी है सन दो हज़ार पचास की ,एक एकांकी लड़के और मानवो के विकास की
* परजीवियों से प्रत्यक्ष हो गई है मुलाकात ,विज्ञान के हाथ लग गया उनका देह गात
* अब उसे खरोच खरोच क्या पाते है ,बनाते सुधा य पीड़ा बरसाते है
* दीप बैठा है घरभितर की दिवार सुखारी ,उसको क्या काम परजीवी के अनुसन्धान हो भारी
* दीप वैसे हम सब में है बसता ,यदि आप भूल जाओ ,वर्षो जग का रास्ता
*तो,,वैसे कल्पना हम सब ही करते ,मन चाहा रूप दे उसे सवरते * एकांकी के मन को कल्पना तो सेहलाती ,और करे भी क्या जो दूर हो प्यारे साथी
* कल्पना को मिथ्या मान के करता मन वन में विहार,मन चाहे रूप में देखता जीता वो अपना प्यार
*.शुन्य ही दिखता है इस सुख का सबको दाम, पर कंकर बन जाती चट्टान, जो विधाता हो बाम
* उसका सुख है दूर खड़े तूफ़ान की शांति ,क्या उसके मुख सुनोगे कैसे बरसी गरजाति कांति
* ये कल्पनाए अपना दाम समझाएंगी ,उसके जीवन में व्यंग अनचाहे रंग बिखराएंगी
* ये वैज्ञानिक अनुसन्धान ,सुखसे भरी कल्पना तमाम * कैसे बदलती सुख की छाया को धूप ,कंही है ख़ुशी कंही, आश्चर्य उफनता कूप
* काव्य से सजा कंहि प्रेम है अनूप ,रामायण का भी दीखता इसमे स्वरुप
* भूमिका मे है विभीषन जी ,अतुल्य भक्त लंका धनी
*.है लहू पीड़ा और कदराता मन ,अचरज में सुख कुछ पल में अगन * थोड़ी गलबाहीं धर्म भव भंजन, है फूल कीचड़ वर्षा पक्षी खंजन
* कुछ अनसुने भाव कभी राज में कंजन , होंगे शब्द मेरे आपकी कल्पना में व्यंजन
* थोड़ी कोशिश की काव्य से हो मन रंजन
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