khwaab ho Mere Agle Janm Ka: Ek Sangrah Pyaar Bhari Kavitaon Ka

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इस किताब की शुरुआत मैंने अपनी एक प्रिय कविता “बस कुछ छोटा-मोटा सा सामान बेचता हूँ” से किया जो कि संसार पर कुछ हद तक एक व्यंग्य है। कुरीतियों के ख़िलाफ़,धर्म के नाम पर गुमराह हुए लोगों के लिए, अपने मार्ग, अपनी पहचान, अपनी संस्कृति भूल चुके लोगों के लिए शायद आँखें खोलने का काम करे। इसके बाद तो आप खोने वाले हैं प्रेम और मोह में। एक अनुभूति करने वाले है एक पीड़ा की, एक विरह की। और शायद प्रेम और मोह में क्या अंतर है ये भी समझ जाओ इन कविताओं के माध्यम से। सभी मुझे कहते हैं कि आपकी भाषा अथवा शब्दावली इतनी सरल है कि सीधे दिल और दिमाग़ में घुसने के लिए समय नहीं लगाती। तो मैं फिर से बता दूँ यह शायद इसलिए है क्योंकि मैं हिंदी के कठिन से कठिन शब्द ख़ुद नहीं जानता…पर हाँ भावनाओं में ज़रूर डूबा रहता हूँ। शायद इसलिए उन भावनाओं को उतार देता हूँ एक कविता के रूप में। मेरी कविताओं में भावनाएँ भी होंगी, एक उद्देश्य भी छिपा होगा और एक चित्रण करने की क्षमता होगी। मेरी एक कविता “स्पष्टीकरण” के द्वारा आप प्रेम में स्पष्टीकरण जान कर ज़रूर आनंदित हो उठेंगे और एक कविता में तो आप भगवान शिव के अथाह प्रेम के दर्शन करेंगे। इसी किताब में एक कविता “सम्मोहन का बुख़ार” में आप कहीं न कहीं अपने आप को ज़रूर महसूस करेंगे। “ज़िंदा गुलाब” में माही के द्वारा अपने प्रेमी से कुछ किए गए सवालों का मज़ा भी लेने वाले हो। “इश्क़ में बदनामी हो यह ज़रूरी तो नहीं” में आप धैर्य और इंतज़ार की सीख कविता के माध्यम से लेने वाले हो ।
बस बाक़ी का ख़ुद पढ़िए और अपने-अपने हिसाब से प्रेम की कल्पना, कविता की कल्पना कीजिए।

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